Yoga Vigyan
......Written by Shivmuni himself
"Yoga Vigyan" book written by Sadgurudev Shivmuni ji maharaj describes science behind yoga. It has ability to spread aatmgyan basics in few hours. Very minute details of yoga is described efficiently in this book. If you want to know basics of Munisamaj and Yoga sadhan in few hours, then this is the first book to be choosen.
अध्याय - १ : योग विज्ञान, आसन विज्ञान
योग नहीं कोई भी साधन हो, कोई भी काम हो, युद्ध हो या खेल हो, उसके वर्णन के पहले, उसे बताने के लिए वा उसका ज्ञान कराने के पहले यह बतलाना आवश्यक है कि वह किस स्थिति में या किस आसन में उत्तमता पूर्वक होगा। अतः योग साधक के लिए भी आसन की आवश्यकता है। किसी विशेष काम को करने के लिए जिस स्थिति विशेष में सुखपूर्वक स्थिर होकर सुविधापूर्वक जो साधन-विशेष या कर्म-विशेष किया जाए वहि ढंग या स्थिति (pose) उसका आसन है। योगदर्शन शास्त्र में भी कहा है – “स्थिर सुखमासनम् ।”
Read the whole topic here
Listen and download audio of whole topic here
अध्याय - २ : साधन का महत्व
जैसे बोतल को साफ करने के लिए बोतल में गर्म जल डालकर उसे बार बार नीचे से ऊपर घुमाते हैं और बोतल को साफकर लेते हैं ठीक इसी तरह से अंग-अंग, जोड़-जोड़, गांठ-गांठ, पोर-पोर और शरीर के अवयव-अवयव में गर्म रक्त बार-बार नीचे-ऊपर और इधर-उधर घुमाकर सारे शरीर को हमारे मुनि लोग स्वच्छ कर लेते हैं।
Read the whole topic here
Listen and download audio of whole topic here
अध्याय - ३ : श्वांस-विज्ञान, षट्-चक्र, प्राणायाम, और चक्रभेदन
शरीर प्रवाह रूप से रहने वाला है। इसमें नया आता रहता और पुराना निकलता रहता है। पुराना श्वास बाहर जाता और नया बराबर भीतर आता रहता है। शरीर के लिए बाहर से शुद्ध वायु का आना जितना आवश्यक है उतना ही आबश्यक भीतर से अशुद्ध बायु का निकलना है। पूरा पूरा पूर्ण रूप से स्वाभाविक रूप में अशुद्ध वायु को भीतर से निकल जाना चाहिए और ठिक उसी तरह से स्वाभाविक रूप से पूरा-पूरा खूब शुद्ध वायु समय से भीतर चला जाना चाहिए।
Read the whole topic here
Listen and download audio of whole topic here
अध्याय - ४ : आत्म विज्ञान
आत्मा में आनन्द है। आत्मा आनन्द का वा सुख का केन्द्र है। आत्मा आनन्दस्वरूप है। यह विषयानन्द की तरह मिथ्या और जड़ नहीं है। विषयानन्द तो इन्द्रियों द्वारा प्राप्त होता है, जैसे मिठाई का आनन्द विषयानन्द है जो जिह्वा से प्राप्त होता है । मिठाई आदि तमाम सांसारिक विषय जड़ होने से मिथ्या हैं।
Read the whole topic here
Listen and download audio of whole topic here
अध्याय - ५ : योग शान्ति और मुक्ति का मार्ग
संसार द्वन्दमय हैं, सब दो-दो हैं, सबका जोड़ा है। दिन-रात, सुख-दुःख, शीतोष्ण, ऊँच-नीच और ज्ञान-अज्ञान। इसी तरह से वास्तव में दिशायें भी दो हैं, जैसे, भीतर और बाहर। भीतर केन्द्र की ओर। बाहर परिधि की ओर।
Read the whole topic here
Listen and download audio of whole topic here
अध्याय - ६ : ज्ञानयोग, स्वाध्याययोग,स्वरूपचिन्तन योग और मन्त्रयोग
इन्द्रियों के साथ रहने पर, इन्द्रियों और उसके भोगों से सम्बन्ध रखने पर यही जीव है और इन्द्रियों तथा भोगों से सम्बन्ध छूट जान पर अर्थात् बाहर से भीतर मुड़ आने पर यही शिव है। एक ही व्यक्ति जैसे जागने पर जागने वाला और सो जाने पर सो जाने वाला कहलाता है, उसी तरह से एक ही व्यक्ति भोग में रहने पर भोगी और योग में रहने पर योगी कहलाता है। भोगी का ही नाम जीव है और महायोगी का ही नाम शिव है, उसी तरह से जीव ही योगपद या स्वरूपस्थता को प्राप्त कर लेने पर सच्चा योगी और शिव कहलाता है।
Read the whole topic here
Listen and download audio of whole topic here