Shantidayee Vichar
......Written by Shivmuni himself
"Shantidayee Vichar" - the name itself tells about its content and true goal. Each topic from this book motivates human soul to follow its true nature, to achieve happiness. This book is like a jewel in the shelf of a voracious reader. Below are some of the topics quoted from this book to motivate a tired person to achieve power of knowledge.
अध्याय - १ : ईश्वर
हमने ईश्वर का दर्शन किया है। पर इन आँखों से नहीं, ज्ञान से। बाहर नहीं, भीतर। अलग नहीं, अपने में। वह दूसरा नहीं है, हमारी आत्मा है। इसे समझो, इसके गृढ़ अर्थ पर विचार करो। सच्ची शान्ति और सच्चा आनन्द इसी ज्ञान के भीतर वर्तमान है।
तुम क्या नहीं कर सकते, पर तुम्हारे भीतर विश्वास नहीं है। अविश्वास के कारण तुम डरते हो। अपने सच्चे स्वरुप को जानकर निर्भय हों जाओ। सारी विपत्ति, सारी कठिनाई और सारा दुःख उसी दिन से छूट जाता है, जिस दिन से यह मनुष्य निर्भय हो जाता हैं। जिस समय से यह मनुष्य भय को अपने हृदय से निकाल देता है , उस वक़्त से असम्भब भी सम्भव हो जाता है।
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अध्याय - २ : सर्वदा प्रसन्न रहो
जैसे को तैसा खींचता है। समान के पास समान जाते हैं। गंजेड़ी के पास गंजेड़ी, भंगेड़ी के पास भंगेड़ी और शराबी के पास गाँव भर के शराबी एकत्र हो जाते हैं। मनुष्य के चरित्र का पता उसकी मित्र मंडली से बहुत कुछ लग सकता है। अतएव यदि हमें सच्चिदानन्द को अपने पास और अपने हृदय में बुलाना है तो हमें स्वयं सच्चिदानन्द बन जाना चाहिए।
तुम, पाप, दोष, रोग, दुःख, शैतान के राज में नहीं, तुम ईश्वर के राज में हो, जिसके राज में पाप, दोष, रोग और दुःख नहीं रह सकता। तुम्हारे ऊपर - नीचे, आगे - पीछे, बाहर - भीतर ईश्वर ही ईश्वर भरा हुआ है। तुम स्वयं ईश्वर हो, तुम स्वयं आनन्दस्वरुप हो ।
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अध्याय - ३ : आत्मबल
ईश्वर तुम स्वयं हो, सर्वशक्तिमान ईश्वर बाहर नहीं, तुम्हारे भीतर ही वर्तमान है। बलवान और विजयी होना तुम्हारा जन् मसिद्ध अधिकार है, इसके लिए ईश्वर या प्रकृति से प्रार्थना करने की आवश्यकता नहीं। जिसकी आवश्यकता है, उसके लिए दृढ़ता और विश्वास के साथ प्रकृति को आज्ञा दो, प्रकृति उसे पूरा करेगी। यह याद रक्खो कि तुम्हारे भीतर जो जीव है वह सारे संसार का नियन्ता और शासक है। तुम्हें यदि सच्चे आनन्द और सच्ची शान्ति की आवश्यकता है तो इसे पहचान लो।
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